फिलहाल, इस मामले में बस के परिचालक की जिम्मेदारी को लेकर जांच शुरू की गई है। खास बात ये है कि दिव्यांगों को निशुल्क यात्रा की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन ये सुविधा सामान्य बसों में ही दी जाती है। लेकिन दिव्यांग गगन ने लाॅन्ग रूट की बस को चुना था, इसके लिए बाकायदा 302 रुपए किराया भी चुकाया।
यदि वो सामान्य बस में सफर करता तो टिकट नहीं लेना पड़ता। सोमवार को गगन ने मुख्यमंत्री सेवा संकल्प पर शिकायत दर्ज करवाई है। शिकायत संख्या 728820 के तहत गगन को बताया गया है कि शिकायत क्षेत्रीय प्रबंधक को भेज दी गई है। बड़ा सवाल ये है कि क्या लोगों में इंसानियत मर चुकी है, जो पहाडी क्षेत्र में आंखों के सामने दिव्यांग को खड़े सफर करते देख सीट देने को तैयार नहीं हुए।
गगन ने कहा कि सोलन तक खडे़ होकर सफर करने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा। सोलन में सीट मिलने के बाद राहत महसूस हुई। उन्होंने कहा कि मामले को उजाकर करने के पीछे मकसद ये है कि बाकी दिव्यांगों को इस तरह की हालत से न गुजरना पड़े। निगम के चालक व परिचालक सचेत रहें। उन्होंने कहा कि टिकट लेने के बावजूद सीट न मिलना काफी कचोट रहा था।
उधर, नाहन डिपो के क्षेत्रीय प्रबंधक संजीव बिष्ट ने पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि जांच की जा रही है। बस के परिचालक से जवाब तलब होगा। क्षेत्रीय प्रबंधक ने कहा कि दिव्यांगों को सामान्य बस में निशुल्क यात्रा की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन शिकायतकर्ता नाॅन स्टाॅप बस में सफर कर रहा था।
क्षेत्रीय प्रबंधक ने इस बात को स्वीकार किया कि मानवता के तहत दिव्यांग को सीट देने की व्यवस्था की जानी चाहिए थी।