Budget 2022 : बजट से ये हैं आम करदाताओं की 6 बड़ी उम्मीदें, लेकिन वित्त मंत्री क्या इस बार देंगी खुशखबरी?

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Budget 2022 : 6 Key Expectations Of Taxpayers : महामारी की मार और अर्थव्यवस्था पर उसके असर को ध्यान में रखते हुए इस बार बजट में रिकवरी और ग्रोथ पर ज्यादा जोर दिए जाने की उम्मीद की जा रही है. बढ़ती महंगाई, कोविड के कारण हुए लॉकडाउन, छंटनी और वेतन कटौती के इस माहौल में व्यक्तिगत करदाता राहत देने वाले बजट की उम्मीद कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि बजट ऐसा हो जो उन पर टैक्स का बोझ कुछ कम करे, ताकि उनकी जेब में अपने जरूरी खर्चों के लिए कुछ और रकम बच जाए. हालांकि उनकी ये उम्मीदें पूरी होना इस बार आसान नहीं लग रहा, फिर भी पर्सनल टैक्स के मामले में उनकी ख्वाहिशों पर एक नज़र तो डाली ही जा सकती है :

1. वर्क फ्रॉम होम (Work from Home) से जुड़े खर्च पर छूट

महामारी की वजह से तमाम कंपनियों और संस्थानों को अपने कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम (Work from Home) यानी घर से काम करने का सिस्टम लागू करना पड़ा है. कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के घरों पर ऑफिस का काम करने लायक सुविधाएं मुहैया कराने में मदद की है. इनमें बेहतर टेबल-कुर्सी, हाई-स्पीड इंटरनेट, प्रिंटर, डेस्कटॉप कंप्यूटर्स, स्टेशनरी जैसी चीजों के लिए फिक्स्ड एलाउंस यानी भत्ते और री-इंबर्समेंट देना भी शामिल है. ये भत्ते या री-इंबर्समेंट महामारी के कारण उत्पन्न हालात की वजह से दिए गए हैं.


केपीएमजी (KPMG) इंडिया के पार्टनर और ग्लोबल मोबिलिटी सर्विसेज-टैक्स के प्रमुख परीज़ाद सीरवाला का कहना है कि आयकर के मौजूदा कानूनों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए बना हो. जबकि हकीकत यह है कि अब इस तरह के हालात लंबे समय तक बने रहने के आसार नजर आ रहे हैं. ऐसे में व्यक्तिगत करदाताओं और उनकी एंप्लायर कंपनियों को वर्क फ्रॉम होम से जुड़े खर्चों पर टैक्स राहत देने के लिए कोई प्रावधान किया जाना चाहिए. एक उपाय यह भी किया जा सकता है कि कर्मचारियों को उनकी कुल आय में वर्क फ्रॉम होम से जुड़े खर्चों के लिए 50 हजार रुपये तक के डिडक्शन की सुविधा दी जाए.

2. इनकम टैक्स स्लैब / टैक्स रेट में बदलाव हो

मौजूदा आयकर प्रावधानों के मुताबिक 60 साल तक की उम्र के व्यक्तिगत करदाताओं के लिए इनकम टैक्स में छूट की सीमा (Exemption Limit) सालाना 2.5 लाख रुपये ही है. यह लिमिट 2014-15 से अब तक बढ़ाई नहीं गई है. इस लिमिट को बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने पर विचार किया जा सकता है, ताकि आम करदाता की जेब में अपने जरूरी खर्चों के लिए कुछ ज्यादा रकम बच जाए. ऐसा करते समय यह आकलन भी करना होगा कि इससे कितने करदाता टैक्स रिटर्न फाइल करने की अनिवार्य शर्त से बाहर चले जाएंगे.

इसके बाद मौजूदा और नई कंसेशन वाली टैक्स रिजीम के स्लैब रेट में संशोधन पर भी विचार किया जा सकता है, ताकि भारत में हमेशा से चले आ रहे प्रोग्रेसिव टैक्स रेट सिस्टम को बरकरार रखा जा सके.


3. LTC कैश वाउचर स्कीम 2023 तक बढ़े

लीव ट्रैवल कंशेसन (LTC) कैश वाउचर स्कीम का एलान वित्त मंत्री ने अक्टूबर 2020 में कंज्यूमर डिमांड को बढ़ावा देने के मकसद से किया था. इस एलान का उद्देश्य यह भी था कि जो करदाता कोविड-19 के दौरान आवाजाही पर लगी पाबंदियों के चलते LTC पर मिलने वाली टैक्स छूट का लाभ नहीं ले पा रहे हैं, उन्हें एक विकल्प मिल जाए. बाद में इसे फाइनेंस एक्ट 2021 में नोटिफाई भी कर दिया गया. इस नई स्कीम का लाभ लेने के लिए कुछ शर्तें भी रखी गईं.

हाल ही में कोविड-19 के मामलों में आई तेजी और उसकी वजह से कई राज्यों में आवाजाही पर लगी पाबंदियों की वजह से इस साल भी कई लोग यात्राएं नहीं कर पाए हैं. ऐसे में LTC कैश वाउचर स्कीम को और दो साल यानी 31 मार्च 2023 तक के लिए बढ़ाना चाहिए.


4. अतिरिक्त पीएफ कंट्रीब्यूशन पर दोहरा टैक्स न लगे

पिछले साल के बजट में की गई घोषणा के मुताबिक फाइनेंस एक्ट 2021 में प्रॉविडेंट फंड में कर्मचारियों का योगदान सालाना 2.5 लाख रुपये से अधिक होने की स्थिति में उस पर मिलने वाले ब्याज को कर्मचारी के हाथ में टैक्सेबल बना दिया गया है. पीएफ में एंप्लॉयर द्वारा कोई योगदान नहीं किए जाने की हालत में यह लिमिट 5 लाख रुपये सालाना की रखी गई है. सीरवाला के मुताबिक सरकार को कानून में संशोधन लाकर यह साफ करना चाहिए कि इस प्रावधान के तहत पीएफ में जमा की जाने वाली जिस रकम पर टैक्स लगाया जा रहा है, निकासी के समय उस पर दोबारा से टैक्स न लगे. दोहरे कराधान (Double Taxation) से बचने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है.

5. स्टैंडर्ड डिडक्शन 1 लाख किया जाए

वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए वित्त वर्ष 2018-19 में ही मेडिकल री-इंबर्समेंट और ट्रैवल एलाउंस को खत्म करके उसके बदले में स्टैंडर्ड डिडक्शन की सुविधा दी गई थी. मेडिकल कॉस्ट में लगातार हो रही बढ़ोतरी, खास तौर पर महामारी के दौरान इसमें आई तेजी को देखते हुए स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50 हज़ार से बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर देना चाहिए. इसके अलावा स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ उन करदाताओं को भी मिलना चाहिए जो नई ऑप्शनल टैक्स रिजीम को अपनाना चाहते हैं.

6. 80-C की लिमिट 3 लाख की जाए

इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 80 C के तहत मिलने वाली 1.5 लाख रुपये की टैक्स छूट बरसों से बढ़ाई नहीं गई है. इस छूट के दायरे में ईपीएफ, पीपीएफ, हाउसिंग लोन प्रिंसिपल का भुगतान, बच्चों की ट्यूशन फीस, राष्ट्रीय बचत और जीवन बीमा समेत बचत/निवेश और अनिवार्य खर्चों से जुड़ी बहुत लंबी फेहरिस्त शामिल है. मौजूदा माहौल और इन मदों पर होने वाले खर्च में हुई बेहताशा बढ़ोतरी के मद्देनजर इस सीमा को बढ़ाया जाना बेहद जरूरी है. सीरवाला का सुझाव है कि स्कूल फीस और हाउसिंग जैसे मदों में होने वाले खर्चों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को यह सीमा बढ़ाकर 3 लाख तक करने पर विचार करना चाहिए. या फिर सरकार बच्चों की ट्यूशन फीस और मेड इन इंडिया प्रोडक्ट्स पर होने वाले खर्चों के लिए अलग से डिडक्शन का प्रावधान भी कर सकती है.

(आर्टिकल : अनिल कुमार)

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