कर्मचारियों की संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक के बाद शुरू हुए पुलिस कांस्टेबलों के आंदोलन पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने कहा है कि पुलिस कांस्टेबलों की संशोधित पे बैंड की मांग पर सरकार रास्ता निकालेगी। लेकिन दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए।हालांकि, मुख्यमंत्री और पुलिस के आला अधिकारियों के लाख दावों के बीच 2015 के बाद भर्ती हुए सैकड़ों पुलिस कांस्टेबलों ने बुधवार को भी विरोध स्वरूप मेस का बहिष्कार जारी रखा। सोशल मीडिया पर परिचितों से समर्थन हासिल करने के लिए भी संदेश भेजते रहे।
मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए जयराम ने उनके सरकारी निवास ओकओवर में वर्दी में जुटने वाले पुलिस कर्मियों को भविष्य में इस तरह की गलती न दोहराने की नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि उन्हें जानकारी थी कि दो-चार लोग आएंगे, पर ये बड़ी संख्या में आ गए। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 से पहले भर्ती और सेवा नियम अलग थे और 2015 में इनमें परिवर्तन हुआ है। इनमें उन सभी ने नियमों के बारे में स्वीकार्यता दी है। कोर्ट ने इसी आधार पर इस मामले को खारिज किया है। सीएम ने साफ किया कि पुलिस कांस्टेबलों का अनुबंध नहीं है। उनका विषय देखा जा रहा है।
मालरोड पर जयराम से मिली महिला, इलाज के लिए मदद को मांगे पैसे तो भरोसा दिया
शिमला के मालरोड पर सीएम जयराम ठाकुर से एक महिला मिली तो उसने इलाज के लिए पैसे मांगे। इस महिला को सुरक्षाकर्मी रोक रहे थे। मुख्यमंत्री गाड़ी में बैठ रहे थे। सीएम ने सुरक्षाकर्मियों को टोका। उस महिला से विस्तार से बातचीत की और अपने कार्यालय आकर इस बारे में जानकारी देने को कहा तथा मदद का आश्वासन दिया।
पुलिस कर्मचारियों के समर्थन में उतरा मजदूर संगठन सीटू
सीटू राज्य कमेटी ने हिमाचल प्रदेश के पुलिस कर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन किया है। राज्य कमेटी के अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर पुलिसकर्मियों के शोषण का आरोप लगाया है। उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए।
उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।
24 घंटे ड्यूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिस कर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बायकाट से उनकी पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। अंग्रेजों के जमाने के बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है। पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं। राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी गाड़ी तक नहीं है। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पंद्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं।