HP News : Jawali : वट वृक्ष के भीतर बसा शिव मंदिर : शिव मंदिर के बारे में जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर : Read More

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यूँ तो हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की धरती कहा जाता है जिस पर भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा है जहां अनेकों ऐतिहासिक और पौराणिक स्थान हैं जो भगवान महादेव के पावन सानिध्य का एहसास दिलवाते हैं । 

परन्तु असंख्य ऐसे शिव धाम भी हैं जो अलौकिक और अद्भुत है परंतु अभी भी दुनिया की नज़रों से अछूते हैं । ऐसा ही एक अलौकिक और अद्भुत शिवधाम बसा है हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िला के ज्वाली उपमंडल के अधीन पड़ते गांव किम्मण में स्थित "कमलेश्वर महादेव "। 

बरगद के वृक्ष की जटाओं के बीच पूरी तरह समा चुके इस अति प्राचीन शिव मंदिर को देखने पर पहली नज़र में देखने से प्रतीत होता है जैसे कि बरगद के वृक्ष के तने के अंदर ये मंदिर बना हो । परन्तु असल में किसी समय ये मंदिर खुले स्थान पर बनाया गया हो जिसके पास वट वृक्ष हुआ होगा । 

कालांतर वट वृक्ष की जटाओं ने इस मंदिर को कुछ इस तरह से आच्छादित कर लिया जैसे कोई मां अपने बच्चे को अपने आँचल में छुपा लेती है । केवल मंदिर का प्रवेशद्वार और रोशनदान ही प्रत्यक्ष रूप से इन जटाओं के आवरण से विमुक्त हैं बाकी मंदिर की सारी दीवारें जटाओं के अंदर समाई हुई हैं ।

माना जाता है कि पेगौड़ा शैली में बने इस प्राचीन मंदिर का निर्माण महाभारत काल में पांडवों द्वारा अपने अज्ञातवास के दौरान किया गया । एक अन्य किवदंती के अनुसार इस मंदिर की स्थापना गुलेर रियासत के किसी शिव भक्त शासक द्वारा की गई । तथ्य चाहे जो भी रहे हों पर इस प्राचीन मंदिर में निवास करते हैं स्वयं कमलेश्वर महादेव ।

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस मंदिर के प्रांगण में पहुंचते एक अलौकिक सुख की अनुभूति होती है । मंदिर के प्रांगण में एक प्राकृतिक जल कुंड है जो कि सारा साल  जल से भरा रहता है कहा जाता है कि इस जलकुण्ड का जल भूमिगत मार्ग द्वारा होते हुए ज्वाली कस्बे के ठीक नीचे स्थित प्राकृतिक जलकुंड नौंण को पानी की आपूर्ति करता है । हलांकि इस कथन की प्रमाणिकता गर्भ में छुपे रहस्य की तरह  है ।



कहा जाता है कि इस कुंड की खुदाई के समय एक शिवलिंग रूपी पाषाण मिला जिसे लोगों ने कुंड से बाहर निकल कर रखा पर अगली सुबह वो फिर कुंड के बीच उसी जगह पर ही स्थित मिला । फिर उसे वहीं रहने दिया गया आज भी वो शिवलिंग पानी के नीचे स्थित है । मंदिर के गर्भगृह के भीतर मुख्य शिवलिंग विराजमान है। मंदिर के बाहर रुद्राक्ष के पेड़ों की छाँव में नंदी, शेषनाग जी और अन्य देवी देवताओं की कई प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं । 

मंदिर में प्रतिदिन पूजा अर्चना की जाती है । मंदिर में विशेष जाति 'नाथ' जाति के लोग कई वर्षों से पुजारी के रूप में सेवाएं दे रहे हैं । इसके अतिरिक्त पुरातत्व विभाग भी इस मंदिर पर नज़र बनाये हुए है । प्रतिदिन इसे देखने आने वाले पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है लोग दूर दूर से इस अलौकिक मंदिर को देखने आते हैं। महाशिवरात्रि वाले दिन इस मंदिर में शिव भक्तों की बहुत भीड़ होती है। स्थानीय ग्रामीणों द्वारा आये दिन भंडारे का आयोजन किया जाता है। 


जब भी कभी कस्बा ज्वाली आने का कार्यक्रम बने तो इस मंदिर के दर्शन का आनन्द ज़रूर लें।

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