दरअसल, दिवाली की रात की यह घटना है. चारों और पटाखों के शोर में तेंदुआ रिहायशी इलाकों में नहीं आता है. बच्चे की पेंट भी फटी नहीं है. हालांकि, घर के पास जंगल जरूर है. वन विभाग का कहना है कि पटाखों की आवाज से तेंदुआ डरता है और जंगल में भाग जाता है. तेंदुए के दिवाली के दिन रिहायशी इलाके में आने के चांस कम हैं. लेकिन पुलिस और वन विभाग की टीमों को मौके और आसपास कुछ ऐसा नहीं मिला है, जिससे कहा जा सके कि बच्चे को तेंदुआ ही उठा ले गया है. सर्च ऑपरेशन के दौरान साथ जंगल में कुछ और जगह खून के धब्बे मिले हैं. खून के धब्बे बच्चे के हैं या नहीं, जांच के लिए मौके से सैंपल लिए हैं. शुक्रवार को दिनभर डाउनडेल से नीचे लालपानी और रामनगर के जंगल में सर्च ऑपरेशन जारी रहा. पुलिस ने एनएच किनारे चल रहे ढाबों में भी पूछताछ की है.
क्या बोले स्थानीय पार्षद
स्थानीय पार्षद जगजीत बग्गा का कहना है कि बच्चा गायब हुआ है. लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि बच्चे को तेंदुआ उठा ले गया है या कुछ और. मां ने बताया कि बेटा पहले काफी बीमार था, अब जब ठीक हुआ तो सभी इसका काफी ध्यान रखते थे. दरअसल, शिमला में तेंदुए के स्पॉट होने के कई मामले सामने आ चुके हैं. 6 अगस्त को कनलोग इलाके से तेंदुए एक सात साल की बच्ची को उठा ले गया था.
बाद में बच्ची का शव क्षतविक्षत हालात में जंगल से मिला था. शिमला शहर में विकासनगर, समिट्री, कनलोग, खलीनी और फागली इलाकों में तेंदुए का आना जाना ज्यादा है. इन इलाकों में रात को कई बार तेंदुआ स्पॉट हुआ है.