हमीरपुर : प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने आरोप लगाया है कि पहले काम पूरे हो रहे हैं और बाद में टैंडर अवार्ड किए जा रहे हैं। हिमाचल में लोक विभाग निर्माण विभाग में ऐसे हैरतअंगेज कामों को अंजाम दिया जा रहा है। सरकार बताए कि ऐसी निपुणता व तेजी किसकी शह पर विभाग में आई है, जहां नियमों को भी नहीं मानने से परहेज हो रहा है। उन्होंने कहा कि पीडब्ल्यूडी का टौणीदेवी व हमीरपुर मंडल भ्रष्टाचार की जद में आ चुके हैं। जारी प्रेस विज्ञप्ति में विधायक राजेंद्र राणा ने बताया कि इस सारे भ्रष्टाचार का चिट्ठा शिकायत पत्र के जरिए महामहिम राज्यपाल, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, मुख्य सचिव हिमाचल सरकार, प्रधान सचिव संबंधित विभाग, गृह सचिव व निदेशक विजीलैंस को भेजा है। उन्होंने कहा कि अपनी सरकार होने की दुहाई देकर व डरा-धमकाकर कुछ लोगों व अधिकारियों ने लोक निर्माण विभाग को लाले की दुकान समझ लिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि चंद ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के चक्कर में विभागीय अधिकारियों ने विभाग को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है तथा ईमानदारी से काम करने वाले ठेकेदारों जोकि टैंडर फार्म लेने जाते हैं, को बेइज्जत कर कार्यालयों से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। आखिर किस नेता की शह पर ऐसा कृत्य किया जा रहा है। सरकार पूरे मामले से पर्दा उठाए और जनता के सामने तथ्य लाए। उन्होंने हैरानी जताई कि चंद ठेकेदारों की जीझूरी कर लोक निर्माण विभाग के अधिकारी मनमाने रेट पर टैंडर अवार्ड करने से पहले ही कार्यों को अपने मनमुताबिक चहेते ठेकेदारों को दे रहे हैं, जबकि द्वेष भावना में कई सड़कों को बजट स्वीकृत होने के बावजूद कार्य पूरे नहीं कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि लंबे समय से टैंडर होने से पहले कार्य करने की शिकायतें आ रही हैं और अब हद भी पार हो चुकी है। उन्होंने सरकार को याद दिलाया कि भ्रष्टाचार में जीरो टोलरैंस की बात कही जाती थी और अब सरकार में बैठे लोग व अधिकारी ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से आग्रह किया कि उनके अधीन आने वाले लोक निर्माण विभाग की कार्यशैली पर खुद नजर रखें व अपनी निगरानी में तुरंत जांच करवाएं। हमीरपुर सहित बाकि जिलों में भी ऐसे घपले सामने आएंगे व खुलासे होंगे, जिसकी कल्पना भी सरकार ने कभी की नहीं होगी। आखिर सरकार जांच करवाए कि ये सारे घपले अधिकारी जानबूझकर कर रहे हैं या उनकी कोई मजबूरी है। विभागीय मुखिया के कहने के बाहर अधिकारी कैसे कायदे-कानून ताक पर रखकर मनमर्जी कर रहे हैं, इस पर जांच जरूरी है।